
JEE में हार नहीं मानी, ड्रॉप ईयर में प्लानिंग बदली, और बन गए IITian!
Success Story: कहा जाता है कि असफलता अंत नहीं होती, बल्कि एक नई शुरुआत का संकेत होती है. कुछ ऐसा ही कर दिखाया है उत्तर प्रदेश के कानपुर के रहने वाले दिव्यांशु ने, जिन्होंने पहली बार जेईई की परीक्षा में असफलता का सामना किया, लेकिन हार मानने के बजाय खुद को नए सिरे से तैयार किया. आज दिव्यांशु IIT मंडी से बीटेक की पढ़ाई कर रहे हैं और एक नई दिशा में अपने सपनों को आकार दे रहे हैं.
बायोलॉजी से लगाव, इंजीनियरिंग की राह
दिव्यांशु की शुरुआती शिक्षा कानपुर में हुई और कक्षा 12 उन्होंने लखनऊ से पूरी की. बचपन से ही उनका झुकाव बायोलॉजी की ओर था. उनके पिता एक वेटेरनरी डॉक्टर हैं और उनके काम को देखकर ही दिव्यांशु की इस विषय में गहरी रुचि जगी. लेकिन वक्त के साथ उन्होंने इंजीनियरिंग की संभावनाओं को भी समझा. जेईई की तैयारी के दौरान उन्होंने आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, डेटा साइंस और बायोलॉजी के बीच जुड़ाव महसूस किया, जिससे उन्हें बायोइंजीनियरिंग के क्षेत्र में आगे बढ़ने की प्रेरणा मिली.
ड्रॉप ईयर: आत्मनिर्भरता और अनुशासन की सीख
दिव्यांशु ने 2021 में पहली बार जेईई मेन और एडवांस की परीक्षा दी थी, लेकिन वांछित परिणाम नहीं मिला. इसके बाद उन्होंने एक साल ड्रॉप लिया और 2022 में दोबारा परीक्षा दी. इस एक साल में उन्होंने पूरी तरह से आत्मनिर्भर होकर पढ़ाई की — ऑनलाइन संसाधनों, किताबों और मॉक टेस्ट की मदद से. यह दौर भावनात्मक और मानसिक रूप से चुनौतीपूर्ण रहा. त्योहार, परिवार और दोस्तों से दूर रहकर उन्होंने अपना पूरा फोकस पढ़ाई पर रखा.
आगे की उड़ान
अब दिव्यांशु का सपना है कि वह कंप्यूटेशनल बायोलॉजी, जीनोमिक्स या न्यूरोसाइंस जैसे रिसर्च क्षेत्रों में उच्च शिक्षा प्राप्त करें और समाज व विज्ञान दोनों में सकारात्मक योगदान दें. उनके लिए आईआईटी मंडी सिर्फ एक संस्थान नहीं, बल्कि एक ऐसी जगह बन गई है जहां उन्होंने खुद को पहचाना, दोस्त बनाए और जीवन के गहरे सबक सीखे.
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